Sunday, 7 December 2025

मोहन राणा की नई कविताएँ : New Poems-Mohan Rana

 कालचक्र, लिपि और टीला 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 काल चक्र

भूल भुलैया में घूमता आईने में पहचान लिए
ख़ुद ही हो गया लापता वहाँ
अपने ही बिम्ब में,
बीत जाता है समय बड़ी जल्दी 
जितना दूर उतना ही क्षणिक हो जाता है

राह देखते हुए मील के पत्थर बदलते 
रास्तों के नाम 
नक़्शों में जगह
वहाँ अपनी एक खिड़की उठाए देखता

लिख कर भी उस किताब का नाम मैं याद नहीं कर पाता
कल आज कल  फिर कल आज कल
लोग तो निरंतर जन्म ले रहे हैं अनाम 
ब्रह्माण्ड के अँधेरे में एक तारे की रोशनी में 

लिपि

मौसम आया था मौसम आयेगा
बसंत तो एक काग़ज़ का पुल
अपने किनारे को खोजता दरवेश ,
मैं लिखूँगा इन शब्दों की स्याही में पानी के रंग से 
अगोचर लिखावट

घर की चौखट पर ठिठक
पलट कर देखता मैं रास्ता
इतना दूर तो नहीं था गंतव्य
मैं ही बदल गया  बार बार  पता पूछते
हर बार एक नया नाम याद रखते

मुझे नहीं मालूम कितने पन्ने होंगे इस जिल्द में
पहले तय नहीं  कोई उम्मीद भी नहीं 
मिलने का वादा भी नहीं
अगले पते पर,
पर्ची पर अपना नाम लिख
 मैं अपनी पहचान पर दस्तक देता हूँ,
जो इस बार तुमने याद दिलाया 

टीला

शब्दों का टीला हम बनाते भाषा के पथरीले किनारों
एक लंबी चुप्पी
उठेगा उद्वेल मन के समुंदर में,
नमकीन आँखों में खामोश सीत्कार
उसकी ऊँचाई  से हम देख पायें सच्चाई  के आर पार 
कुछ उम्मीद
बदलती हुई पहचानों के भूगोल में
बना पायेंगे एक ठिया; भविष्य की धरोहर
 कि संभव है एक इतर जीवन और भी 

 मोहन राणा की नई कविताएँ 

 https://raagdelhi.com/news/hindi-poetry-by-pravasi-bhartiya---mohan-rana-new-poems 

 

 


मोहन राणा की नई कविताएँ : New Poems-Mohan Rana

 कालचक्र, लिपि और टीला                                  काल चक्र भूल भुलैया में घूमता आईने में पहचान लिए ख़ुद ही हो गया लापता वहाँ अपने ...