कविता - मोहन राणा Poem - Mohan Rana
अगर
अगर जंगल ना
होते तो कैसी होती पहचान पेड़ की
अगर दुःख ना होता तो ख़ुशी को कैसे जानता
बनता कुछ और नहीं
क्षण भर में ही अजन्मा नहीं
बस एक क़मीज़ पतलून
सुबह शाम भोजन
एक नन्ही सी उम्मीद
कोई याद कभी करे किसी एकांत में
अगर चुनता मैं कुछ और
कह पाता कभी जो रह जाता है
बहरे प्रदेशों में अनसुना हमेशा
अगर दुःख ना होता तो ख़ुशी को कैसे जानता
बनता कुछ और नहीं
क्षण भर में ही अजन्मा नहीं
बस एक क़मीज़ पतलून
सुबह शाम भोजन
एक नन्ही सी उम्मीद
कोई याद कभी करे किसी एकांत में
अगर चुनता मैं कुछ और
कह पाता कभी जो रह जाता है
बहरे प्रदेशों में अनसुना हमेशा
(2009)
(शेष अनेक)
कविता संग्रह
©मोहन राणा
2019
[Shesh Anek /Poetry collection]Mohan Rana