मैं लिखने बैठा गश्ती चिठ्ठियाँ
पेड़ के नीचे अनवरत मर्मर में,
पतझर में वे गिरती रहीं
तुम्हें देख मैं ठहर गया
(2024)
मैं लिखने बैठा गश्ती चिठ्ठियाँ
पेड़ के नीचे अनवरत मर्मर में,
पतझर में वे गिरती रहीं
तुम्हें देख मैं ठहर गया
(2024)
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem ...