Sunday, 12 May 2019

कविता फिर

 
कविता - मोहन राणा Poem - Mohan Rana
कविता - मोहन राणा Poem - Mohan Rana

अगर 

 

अगर जंगल ना होते तो कैसी होती पहचान पेड़ की
अगर दुःख ना होता तो ख़ुशी को कैसे जानता

बनता कुछ और नहीं
क्षण भर में ही अजन्मा नहीं
बस एक क़मीज़ पतलून
सुबह शाम भोजन
एक नन्ही सी उम्मीद
कोई याद कभी करे किसी एकांत में

अगर चुनता मैं कुछ और
कह पाता कभी जो रह जाता है
बहरे प्रदेशों में अनसुना हमेशा


(2009)

(शेष अनेक)
कविता संग्रह
©मोहन राणा
2019
[Shesh Anek /Poetry  collection]
Mohan Rana

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

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