नाम नहीं मिल रहे थे कुछ दिन बीते, किसी ने बताया यहाँ देखो.
तो आप भी देखें यह त्योहारी समकाल पद्य
अंक.
(ना) पसंद आए तो भी आप भी जरूर लिखें
"अच्छी कविताएँ हैं"
अपने एकांत में बेचारा छायावादी किंकर्तव्य-विमूढ़
हो गया
गड्डी की हैडलाइट के सामने खरगोश की
तरह,
खिताबी कवि ब्रेक नहीं दबाते
2019 © मोहन राणा